लोगों की राय
लेख-निबंध >>
सातवाँ रंग
सातवाँ रंग
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2010 |
पृष्ठ :248
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 4273
|
आईएसबीएन :9788126719297 |
 |
|
5 पाठकों को प्रिय
206 पाठक हैं
|
"समकालीन रंगमंच का आईना : विषयगत गहराई और व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ।"
‘सातवाँ रंग’ देवेन्द्र राज अंकुर की निबन्ध पुस्तकों की शृंखला में सातवीं कड़ी है। उनके निबन्धों ने हिन्दी थिएटर के सवालों को, पत्र–पत्रिकाओं और फिर पुस्तकों के माध्यम से आम हिन्दी पाठक के सरोकारों से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया है। अपनी व्यावहारिक दृष्टि के चलते उनके निबन्धों ने थिएटर–जगत के अध्येताओं को भी सोचने के लिए नई भूमि उपलब्ध कराई है। इससे पहले प्रकाशित छह पुस्तकों की लोकप्रियता ने इस मिथक को भी तोड़ा कि हिन्दी रंगमंच अपने में बन्द कोई दुनिया है। इसी बहुस्तरीय प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए ‘सातवाँ रंग’ में संकलित आलेख अपनी विषयगत ‘रेंज’ और वैचारिक गहराई से हमें समकालीन रंग–परिदृश्य का एक आईना उपलब्ध कराते हैं। इस समय के लगभग सभी प्रश्नों का विश्लेषण, मनन करते हुए विजय तेन्दुलकर और हबीब तनवीर जैसी थिएटर–हस्तियों को स्मरण करते हुए, और साथ में अपने समय के रंग–लेखन से गुज़रते हुए यह पुस्तक हमें थिएटर के वर्तमान का एक समूचा ख़ाका उपलब्ध करा देती है। देवेन्द्र राज अंकुर के दो साक्षात्कार और निर्देशक के रूप में उनकी रचना–प्रक्रिया पर डायरी शैली में एक आलेख इस पुस्तक का विशेष आकर्षण हैं जिनसे पाठक यह बख़ूबी समझ सकते हैं कि ‘कहानी का रंगमंच’ विधा के आविष्कारक अंकुर जी अपनी टीम से प्रस्तुति की तैयारी कैसे कराते हैं।
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai